आदिवासी समाज में आरक्षण में कटौती के कारण राज्य की वर्तमान सरकार और पिछली सरकार दोनों जिम्मेदार - प्रकाश ठाकुर
जगदलपुर - सर्व आदिवासी समाज बस्तर संभाग के संभागीय अध्यक्ष प्रकाश ठाकुर द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया कि छत्तीसगढ़ राज्य में अनुसूचित जनजातियों की आरक्षण घटने के लिए पूर्ववर्ती एवं वर्तमान राज्य सरकार की कमजोरी के कारण से हुआ है एक तरफ पूर्ववर्ती सरकार ने अनुसूचित जाति जनजाति आरक्षण अधिनियम 2012 को पूरा करने में विफल रही वही इस आदेश को राष्ट्रपति भारत सरकार के द्वारा जारी करवाने में भी कोताही बरती गई ठाकुर ने आगे बताया कि पूर्ववर्ती सरकार की कमजोरी को वर्तमान राज्य सरकार भी दूर करने में नाकाम रही।
जिसका नतीजा हाईकोर्ट के फैसले में हम सबके सामने हैं राज्य सरकार अभी आदिवासी समाज का हितैषी बनने का ढोंग करती है वहीं दूसरी ओर इस फैसले के पश्चात सामान्य प्रशासन विभाग के सचिव कमल प्रीत सिंह द्वारा तुरंत ही सभी विभागों को अमल करने के निर्देश जारी होते हैं,एक तरफ प्रदेश के मुख्यमंत्री सुप्रीम कोर्ट में बड़े-बड़े वकीलों को लगाने की बात कर रहे है वहीं हाईकोर्ट की जिरह के दौरान अनुसूचित जनजाति समुदाय की क्वांटिफिएबल डाटा पेश करने में नाकाम रही जिसे किया जा सकता था लेकिन राज्य सरकार की नियत में खोट है उसके कारण या स्थिति उत्पन्न हुई वहीं दूसरी ओर राज्य सरकार की ओर से जो वकील पैरवी कर रहे थे।
उनके द्वारा इस मामले को विधिवत तरीके से हाई कोर्ट बेंच के सामने पेश नहीं किया गया इसकी जानकारी हाई कोर्ट द्वारा जारी की गई फैसले की कॉपी में जाहिर किया गया है, जिसमें राज्य सरकार के पक्ष पर हाईकोर्ट ने प्रश्नवाचक चिन्ह लगाया है कुल मिलाकर राज्य सरकार की नियति में खोट होने के कारण वकीलों को दमदारी से जिरह करने से रोका गया है।
ठाकुर ने आगे बताया कि राज्य सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव कमलप्रीत सिंह की भूमिका जनजाति समुदाय के लिए हमेशा से नकारात्मक ही रहा है इस अधिकारी ने पहले भी क्वांटिफिएबल डाटा एकत्रित करने के दौरान क्वांटिफेबल डाटा को जिम्मेदारी पूर्वक कार्य निर्वहन नहीं किया गया वहीं वर्तमान में सामान्य प्रशासन विभाग में पदस्थ हैं।
उनके द्वारा जनजाति समुदाय के हितों के विरुद्ध हाईकोर्ट के फैसले को तुरंत अमल के लिए सभी विभागों को निर्देश जारी किया गया है सर्व आदिवासी समाज बस्तर संभाग मुख्यमंत्री से यह बात जानना चाहता है कि हाई कोर्ट के निर्णय को अमल कराने के लिए क्या राज्य सरकार के द्वारा निर्देश जारी कर सामान्य प्रशासन विभाग को निर्देश दिया गया है यदि नहीं दिया गया है कि स्थिति में या तो कमलप्रीत सिंह सरकार चला रहे हैं या फिर मुख्यमंत्री झूठ बोल रहे हैं दो ही स्थिति निर्मित होती है वहीं दूसरी ओर प्रदेश के आदिम जाति कल्याण विभाग के मंत्री की भूमिका भी इस मामले में निराशाजनक जान पड़ता है।
इस विभाग का कार्य ही अनुसूचित जनजाति समुदाय के विकास उत्थान एवं उनके संवैधानिक हितों की संरक्षण की उत्तरदायित्व को निर्वहन करने का है परंतु समाज विगत 4 सालों से इस मंत्री की विभाग की उत्तरदायित्व और जिम्मेदारियों से दूर ही नजर आते हैं आदिम जाति कल्याण मंत्री अनुसूचित क्षेत्र बस्तर एवं सरगुजा संभाग के संभागीय मुख्यालय में 4 साल के बाद भी एक बार भी विभागीय समीक्षा बैठक से लेकर आदिवासी समाज के साथ कोई बैठक आयोजित नहीं किया साथ ही साथ विभागीय मंत्री द्वारा क्वांटिफिएबल डाटा को इमानदारी पूर्वक पूरे राज्य से एकत्रित कर हाईकोर्ट में जिरह के दौरान पेश करने हेतु किसी भी तरह का प्रयास नहीं किया गया यह सीधा-सीधा विभागीय मंत्री का गंभीर लापरवाही नजर आता है।
ठाकुर ने आगे और बताया कि कांकेर विधायक शिशुपाल सोरी द्वारा एक तरफ कुछ आदिवासी समुदाय के लोगों को अपने साथ ले जाकर मुख्यमंत्री निवास कार्यालय में सामाजिक मुद्दों को वास्तविकता से परे मामलों को ले जाकर बताया जाता है जबकि पूरे प्रदेश का आदिवासी समाज उन मुद्दों पर उनकी राय अलग होती है कुल मिलाकर संसदीय सचिव द्वारा या तो मुख्यमंत्री को गुमराह किया जाता है या फिर मुख्यमंत्री के द्वारा ही इस तरह का कृत्य करने का एक षड्यंत्र रचा जा रहा है जिसके कारण भी हाईकोर्ट में समुदाय की संवैधानिक हक पर इसका नकारात्मक असर पड़ा है।
सर्व आदिवासी समाज बस्तर संभाग प्रदेश के मुख्यमंत्री से सामान्य प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव कमलप्रीत सिंह को तत्काल प्रभाव से हटाए तथा सरकार के आदिम जनजाति कल्याण मंत्री डॉ प्रेमसाय सिंह टेकाम तथा कांकेर विधायक एवम संसदीय सचिव शिशुपाल सोरी को पद से विमुक्त किया जाय। यदि राज्य सरकार इनको पदों पर सुशोभित रखती है तो यह राज्य सरकार द्वारा आदिवासियों को अंधेरे में रख कर गुमराह किया जा रहा है। आदिवासी समाज में आरक्षण कटौती के कारण भारी आक्रोश पनप रहा है।
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