आदिवासी आरक्षण पर छत्तीसगढ़ सरकार को नोटिस: SLP आवेदन पर सुनवाई के बाद उच्चतम न्यायालय ने मांगा जवाब, चार सप्ताह बाद फिर सुनवाई
आदिवासी आरक्षण पर छत्तीसगढ़ सरकार को नोटिस SLP आवेदन पर सुनवाई के बाद उच्चतम न्यायालय ने मांगा जवाब, चार सप्ताह बाद फिर सुनवाई

दिल्ली - छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने 19 सितम्बर को एक ऐतिहासिक फैसला देते हुए छत्तीसगढ़ में 58% आरक्षण को असंवैधानिक बता दिया। ऐसा करते हुए अदालत ने आरक्षण अधिनियम को रद्द कर दिया। इसके बाद से आदिवासी समाज में आंदोलन शुरू हो गए हैं। सरकार ने उच्चतम न्यायालय में अपील करने की बात कही है। हालांकि अभी तक सरकार अपील का आधार ही तय नहीं कर पाई है। इधर आदिवासी कार्यकर्ता और विधिक सलाहकार बी.के. मनीष, प्रकाश ठाकुर, विद्या सिदार, छत्तीसगढ़ अनुसूचित जनजाति शासकीय सेवक विकास संघ और योगेश कुमार ठाकुर ने विशेष अनुमति याचिका के लिए आवेदन दिया है। 
सोमवार को दोपहर बाद योगेश कुमार ठाकुर और प्रकाश ठाकुर के आवेदन पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता का पक्ष सुनने के बाद जस्टिस गवई और नागरत्ना की पीठ ने इसको स्वीकार करते हुए राज्य सरकार और दूसरे आरक्षण मामले में अब तक क्या हुआ है राज्य सरकार ने 2012 आरक्षण के अनुपात में बदलाव किया था। इसमें अनुसूचित जनजाति वर्ग का आरक्षण 32% कर दिया गया। वहीं अनुसूचित जाति का आरक्षण 12% किया गया। इस कानून को गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी। बाद में कई और याचिकाएं दाखिल हुईं। 

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 19 सितम्बर को इस पर फैसला सुनाते हुए राज्य के लोक सेवा आरक्षण अधिनियम को रद्द कर दिया। इसकी वजह से आरक्षण की व्यवस्था खत्म होने की स्थिति पैदा हो गई है। शिक्षण संस्थाओं में भी आरक्षण खत्म हो गया है। भर्ती परीक्षाओं का परिणाम रोक दिया गया है। वहीं कॉलेजों में काउंसलिंग नहीं हो पा रही है।

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